Saturday, August 8, 2020

तुमने तो कहा था

तुमने तो कहा था, कभी साथ ना छोड़ोगे।

मगर जब वक़्त बदला, तो हाथ छुड़ा लिया।

तुमने तो कहा था, कि तुम मेरी पहचान हो। 

मगर भरी महफ़िल में, मुझे अजनबी बता दिया। 

तुमने तो कहा था, मेरी वफ़ा पे शक ना करो। 

मगर बेदर्दी से मुझे छोड़, गैर को अपना लिया। 

तुमने तो कहा था, मोहब्बत तुमसे सीखी है। 

मगर मेरे प्यार को, मेरी भूल बता दिया। 

तुमने तो कहा था, इंसानियत मर चुकी है। 

तुमने खुद ही इसे, साबित करके दिखा दिया। 

Tuesday, June 30, 2020

Human

मेरे बचपन की बात है। एक बार हम सब बच्चे गीली मिट्टी के गोले बनाकर मेरे घर की दीवार पर फेंक कर चिपका रहे थे। उससे पूरी दीवार गंदी हो गयी थी, पर हम सबको बहुत मजा आ रहा था। इतने में मेरी दादाजी वहाँ आ गये। उन्होंने कड़क आवाज में हम सबको डाँटा तो सब बच्चे भाग गये और केवल मैं अकेला वहाँ रह गया। मुझे कभी अपने दादाजी से डर नहीं लगता था। वो मुझसे प्यार से बोले-"ये क्या हो रहा था?" तब हँसते हुए मैंने कहा-"हम लोग खेल रहे थे। सब मिट्टी के गोले बनाकर दीवार पर फेंक रहे तो मैं भी वैसा करने लगा। बड़ा मजा आ रहा था।" तब दादाजी समझाते हुए बोले-"सब लोग कुएँ में कूद जायेंगे तो तुम भी उनके पीछे कुँए में कूद जाओगे? ऐसा तो भेड़ें करती हैं। तुम भेड़ हो कि मनुष्य हो? भगवान ने अक्ल नहीं दी क्या तुम्हें? अब ये साफ कौन करेगा? बताओ।" दादा जी की बात सुनकर मैं लज्जित हो गया। दीवार को साफ करना मेरे बस की बात नहीं थी क्योंकि हमने वो गोले बहुत ऊपर तक फेंके थे। कोई बड़ा ही स्टूल पर खड़े होकर दीवार साफ कर सकता था। मुझसे कुछ कहते नहीं बना। तब दादाजी ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-"जरूरी नहीं की जो सब कर रहे हों वो सही हो। अपनी बुद्धि का उपयोग किया करो। भगवान ने तुम्हें भी अक्ल दी है।" यह सुनकर मैं दीवार के पास गया और जहाँ तक मेरे हाथ पहुँच सकते थे, वहाँ तक के सारे मिट्टी के गोले मैंने जमीन पर गिरा दिये। यह देखकर दादाजी खुश हो गये। मेरे दादाजी को ब्रह्मलीन हुए वर्षों हो गये, पर उनकी दी हुई यह एक सलाह शिक्षा बनकर मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन गयी। मैंने कभी भी किसी बात की वास्तविकता जाने बिना उसे सच नहीं माना। उनका यह परामर्श मेरे जीवन के कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मेरा सहायक बना, विशेषकर जब मेरा साथ देने वाला कोई नहीं था और सब मेरे विरुद्ध थे। इसके लिए मैं आज भी अपने दादाजी का हृदय से धन्यवाद करता हूँ। 

Thursday, June 4, 2020

Innocent Creature

निर्दोष जीव

निर्दोष जीव को मार कर, तुम खुश कैसे होते हो?
अनसुना कर वो करूण क्रंदन, चैन से कैसे सोते हो?
दिया जीवन जिसे प्रकृति ने, बिना तुमसे कुछ भी लिये।
उस असहाय के प्राण हरने, इतने आतुर क्यों होते हो?
धरती तुम्हारी बस नहीं, ये घर है हर इक जीव का।
किसी का बसेरा छीनने वाले, फिर तुम कौन होते हो? 
दे सकते तुम जीवन नहीं, तो मारते किस हक से हो?
जब दर्द तुमको होता है, तब सिसक कर क्यों रोते हो?

Monday, May 25, 2020

Ego

अहं :-

कुछ लोगों में हर बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहने की एक बड़ी विचित्र प्रवृत्ति होती है। दस का सौ, तिल का ताड़ और राई का पहाड़ करे बिना जैसे उन्हें चैन नहीं आता। विनय का भी यही स्वभाव था। हर बात को अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर बताना। एक बार वो अपने घनिष्ठ मित्रों राहुल, नंदन, सुरेन्द्र और विवेक के साथ अपने एक चचेरे भाई विकास से मिलने गया। विनय ने अपने मित्रों के सामने विकास की खूब प्रशंसा की। विकास से मिलने के बाद सबका विचार कहीं आसपास ही पैदल घूमने का बना। सब काॅलोनी से बाहर मुख्य सड़क की तरफ पैदल चल पड़े और बहुत देर तक वहीं घूमते रहे। वहाँ थोड़ी आगे एक सरकारी कार्यालय था। उस भवन का उद्यान बड़ा ही सुन्दर था। वो विद्युत् विभाग का एक बड़ा ऑफिस था जो एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैला था। विनय ने सबसे कहा-"चलो यहाँ घूमते हैं और थोड़ी देर यहीं बेंच पर बैठते हैं।" इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए विवेक ने कहा-"ये बोर्ड लगा है सामने। इसे अच्छे से पढ़ लो। केवल कार्यालय के कर्मचारियों को छोड़कर अन्य लोगों का प्रवेश निषेध है। क्यों ऐसी जगह जाना चाहते हो जहाँ बाद में दो बातें सुननी पड़ें। यहाँ से आगे चलो।" यह बात विनय को अच्छी नहीं लगी। उसने बड़ा बुरा सा मुँह बनाकर विवेक से कहा-"भाई, तू ये बात-बात पर भाषण मत दिया कर। विकास यहीं का रहने वाला है और यहाँ लोकल के लोगों को कोई नहीं टोकता। डरने की कोई जरूरत नहीं है।" विवेक को विनय का यह अहं अच्छा नहीं लगा। फिर भी बिना क्रोधित हुए उसने कहा-"यहाँ एक और बोर्ड लगा है। कुत्तों से सावधान। हर ऑफिस में कुत्ते नहीं रखे जाते। इसका मतलब साफ है कि यहाँ नियम बहुत सख्त हैं। मेरी मानो कहीं आगे चलते हैं।" विनय को विवेक का यह तर्क बहुत बुरा लगा। अपनी बात पर जोर देते हुए उसने कहा-"भाई, तू क्या इस जगह के बारे में मुझसे और विकास से ज्यादा जानता है। यहाँ के कुत्ते भी हमें पहचानते हैं। वैसे भी मुझे कुत्तों से निपटना आता है। मेरे चाचा के घर में एक भी एक पालतू कुत्ता है। कुत्ते तो खेलते हैं मेरे साथ। तुम सब टेंशन मत लो।" इतना कहकर विनय ने बड़े आत्मविश्वास से सबकी ओर देखा। सुरेंद्र ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा-"तू कभी-कभार जरुरत से कुछ ज्यादा ही सोचने लगता है विवेक। जब अपना भाई इतने विश्वास से कह रहा है, तो जरूर सच ही कह रहा होगा। वैसे भी सब थक गए हैं। चल अब अंदर चलकर बैठते हैं।" नंदन ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलते हुए कहा-"हाँ यार, अभी आराम करने का मन कर रहा है। अभी अंदर चलो। अब जो होगा देखा जायेगा।" विवेक अकेला पड़ गया था। अपने क्रोध को मन में दबाकर के वो चुपचाप सबके साथ उस उद्यान में चला गया। 

उद्यान में अंदर एक खूबसूरत फव्वारा भी बना था पर वह बंद था। सब उसी की और चले गये। पास जाकर देखा तो उस गोलाकार फव्वारे की चौड़ाई आठ फीट से ज्यादा थी और उसकी गहराई दस फीट से ज्यादा थी। उस फव्वारे में बिल्कुल भी पानी नहीं था और उसकी तली में पेड़-पौधों की सूखी पत्तियाँ पड़ी थीं। यह देखकर विवेक कुछ चकित रह गया। विवेक के देखते ही देखते सब उस फव्वारे की चौड़े पाट पर बैठ गये। विवेक ने सबको टोकते हुए कहा-"ये कोई बैठने की जगह नहीं है। पीछे इस फव्वारे की गहराई देखो। यदि गलती से गिर गये तो? कहीं बैंच पर टिककर बैठते हैं।" विनय ने जैसे विवेक का उपहास करते हुए कहा-"भाई, हम  लोग तो यहीं बैठेंगे। तुझे डर लग रहा है तो कहीं और चला जा।" ये बात सुनकर सब हँस पड़े। विवेक को सबका उसे देखकर इस तरह हँसना बहुत बुरा लगा। पर इससे पहले कि विवेक उन सबसे कुछ कह पता, अचानक वहाँ कुत्तों के बहुत जोर-जोर से भौंकने की आवाज सुनाई देने लगी। सबने आवाज की दिशा की तरफ देखा तो भवन की ओर से पाँच बड़े आकार के कुत्ते तेजी से दौड़ते हुए उनकी तरफ आ रहे थे। यह देखकर सब डर गये पर इससे पहले कि कोई अपनी जगह से हिल भी पाता, वो कुत्ते सबके सामने बिल्कुल पास आकर खड़े हो गये और देखकर गुर्राने लगे। यह दृश्य देखकर सब बुरी तरह से डर गये और विकास का संतुलन बिगड़ गया। वो पीछे फुव्वारे में गिर ही पड़ता कि उसी के पास खड़े विवेक ने फुर्ती से उसे पकड़ लिया। यह देखकर एक कुत्ता फिर जोर से भौंका और उनके बहुत नजदीक आ गया। विकास, विनय और राहुल के पसीने छूट गए। विवेक ने धीमी आवाज में सबसे कहा-"कोई अपनी जगह से हिलना मत। हम जरा भी हिले तो गये काम से।" विवेक की आवाज सुनकर वो सब  कुत्ते फिर भौंके। सब लोग बहुत डर गये थे और विवेक की बात मानकर अपनी-अपनी जगह पर जैसे अचल हो गये थे। अचानक भवन में से किसी पुरुष के चिल्लाने की आवाज आयी-"ये कुत्ते क्यों भौंक रहे हैं? देखो वहाँ जाकर।" मात्र एक-दो मिनिट बाद तेज कदमों से चलते हुए चार अधेड़ पुरुष वहाँ आये। उनके चेहरे पर व्यग्रता और जिज्ञासा के भाव थे। उनमें से गार्ड की तरह दिखने वाले एक व्यक्ति ने कड़क आवाज में कहा-"कौन हो आप लोग और यहाँ कैसे आये?" उसके इस प्रश्न के उत्तर में मिमियाती सी आवाज में विकास ने कहा-"मैं यहीं कॉलोनी में रहता हूँ। ये मेरे कॉलेज के दोस्त हैं। इन्हें घुमाने लाया था।" तब कुछ क्रोधपूर्ण स्वर में उनमें से ऑफीसर की तरह दिखने वाले एक व्यक्ति ने कहा-"यदि तुम यहीं के रहने वाले हो तो तुम्हें तो पता होगा कि यहाँ आम लोगों का प्रवेश वर्जित है। ये कोई सरकारी पार्क नहीं है दोस्तों के साथ घूमने के लिये। बिजली विभाग का हेड ऑफिस है। बाहर लगा बोर्ड भी दिखाई नहीं दिया क्या?" विकास से कुछ कहते ना बना। विनय के चेहरे से भी डर झलक रहा था। तब विनम्र स्वर में विवेक ने कहा-"सॉरी अंकल। हम लोग बहुत देर से पैदल घूम रहे थे। बहुत थक गये थे इसलिए ये पार्क जैसी जगह को देख कर अंदर आ गए। बोर्ड पर किसी का ध्यान नहीं गया। सॉरी, हम लोगों के कारण आप सब को डिस्टर्ब हुआ। आप ये कुत्तों को पीछे कर लीजिये तो हम लोग चले जाते हैं।" तब उनमें से एक अन्य व्यक्ति ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा-"बाहर एक नहीं दो बोर्ड लगे थे। दोनों नहीं दिखे। ये इतने बड़ी बिल्डिंग भी नहीं दिखी। ये गेट के ऊपर लगा इतना बड़ा बोर्ड भी नहीं दिखा। किस कॉलेज के छात्र हो भाई?" विवेक सहित बाकी सब को भी ये उपहास अच्छा नहीं लगा पर पुनः बात सँभालते हुए विवेक ने कहा-"जी नहीं, हम लोगों का ध्यान नहीं गया किसी भी बोर्ड पर। हम लोग यहाँ पहली बार आये हैं।" तब उस गार्ड ने विकास की तरफ इशारा करते हुए कहा-"पर ये तुम्हारा दोस्त तो सब जानता था ना। ये तो तुम लोगों को यहाँ घुमाने लाया था। कितना झूठ बोलोगे भाई तुम लोग।" यह बात सुनकर विवेक को क्रोध आ गया पर स्वयं को संयत करके और गार्ड की आँखों में देखकर वो दृढ़ स्वर में बोला-"ये हमें कॉलोनी घुमाने लाया था, ये जगह नहीं। और यहाँ आने की गलती के लिये मैं सबकी तरफ से माफ़ी माँग चुका हूँ। आप बात को ज्यादा मत बढ़ाइये। ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है। हम सब थक गये थे इसलिये यहाँ सुस्ताने आ गये। हमने जानबूझकर ये नहीं किया। हम अपनी गलती मानते हैं। अब इन कुत्तों को हटाईये ताकि हम जा सकें।" तब उस गार्ड ने उसी रौबपूर्ण अंदाज में कहा-"ठीक है। पर अब अगली बार से ध्यान रखना।" ये कहकर उसने एक कुत्ते के गले में बंधा पट्टा पकड़कर उसे कुछ पीछे खींचा और बाकी कुत्तों को उसके पीछे आने का इशारा करते हुए कहा-"चलो इधर आओ।" तब उस ऑफीसर ने विवेक से कहा-"अब आप लोग जाइये।" तब धीमी आवाज में -"थैंक यू सर"- कहकर विवेक आगे बढ़ गया। उसके पीछे-पीछे सभी पार्क से बाहर आ गये।

पार्क से निकलते हुए उन्हें उन लोगों के बातें करने और हँसने की आवाजें सुनाई दे रही थीं-"ये आज कल के लड़के खुद को कुछ ज्यादा ही स्मार्ट समझते हैं। बोर्ड दिखाई नहीं दिया। हम लोगों को बिल्कुल मूर्ख समझ रखा है इन लोगों ने। इतनी बड़ी बिल्डिंग भी दिखाई नहीं दी।" ये सब बातें विवेक, राहुल, नंदन और सुरेंद्र को बहुत बुरी लगीं पर सब चुपचाप विकास के घर की तरफ चले जा रहे थे। सब थके हुए थे और सबका मूड बहुत खराब हो चुका था इसलिये किसी ने विनय और विकास से कुछ नहीं कहा। विकास के चेहरे पर पछतावे और शर्म के भाव थे और विनय क्रोध से लाल हो रहा था। आज सबके सामने उसका झूठा अहं खंडित हो गया था।      

Wednesday, December 25, 2019

After a certain time

एक समय के बाद, हर राज से पर्दा उठ जाता है। 
सूर्य, चंद्रमा और सत्य, ज्यादा समय तक नहीं छिपते।
एक समय के बाद, संवेदनायें खत्म हो जाती हैं।
हमेशा रोने वालों का, कोई साथ नहीं देता।
एक समय के बाद, बुढ़ापा और मौत आते हैं।
जवानी के गुरूर पर, तब पछतावा होता है।
एक समय के बाद, जब मौत सामने होती है।
पूरी जिंदगी का आईना, पल भर में दिखा देती है।
एक समय के बाद, बुराई हार जाती है।
उस ईश्वर के सामने, छल-बल नहीं चलता।
एक समय के बाद, सिर्फ पछतावा होता है।
क्यों कि समय कभी, किसी के लिए नहीं रुकता।
समय रहते सोच लो, समय का क्या करना है।
एक समय के बाद, समय समय नहीं देता। 

Wednesday, December 4, 2019

Nature

गौर करो तो पेड़-पौधों में भी जान है।
प्रकृति के हर कण की अपनी पहचान है।
कुदरत का हर रंग रूप बड़ा निराला है।
सब जड़-चेतन इस प्रकृति की ही संतान हैं।
इस धरती पर सबका बराबर अधिकार है।
ईश्वर को अपनी हर रचना से प्यार है।
फिर क्यों हम जंगलों को मिटा रहे हैं।
तरक्की के लिए प्रदूषण फैला रहे हैं।
यदि ऐसे ही हम पर्यावरण मिटायेंगे।
अपने बच्चों को कैसी धरती देकर जायेंगे।
आओ मिलकर पर्यावरण बचाएं हम।
अपनी आदतें बदलें और वृक्ष लगाएं हम।

Friday, November 29, 2019

When there will be the morning when ?

वो सुबह कब आएगी।
जब स्त्री निर्भय होगी, निर्भया नहीं बन पायेगी।
जब स्त्री शक्ति विश्व में, सर्वोपरि बन जायेगी।
दहेज के लिए फिर, कोई बहू नहीं जलाई जायेगी।
स्त्री बिना किसी डर के, पूरे विश्व में घूम पायेगी।
पुरुष के साथ बराबरी से, समाज को उन्नत बनायेगी। 
जब कोई किसी स्त्री को, भोग्य वस्तु नहीं समझेगा।
मातृ शक्ति स्वरूपा स्त्री, हर घर में पूजी जायेगी।
जब कामी व्याभिचारियों से, ये धरती खाली हो जायेगी।
पवित्र सभ्य समाज में, हर बेटी शान से मुस्कुरायेगी।
वो सुबह कब आयेगी??? 

Monday, November 18, 2019

Teach me

मुझे भी सिखा दो

मुझे भी सिखा दो, प्यार का दिखावा करना।
मैं प्यार करता हूँ, दिखावा मुझे नहीं आता।
अपना बना कर, धोखा कैसे देते हैं किसी को। 
मुझे भी सिखा दो, ये फरेब मुझे नहीं आता।
कैसे खेलते हैं लोग, किसी के मासूम जज्बात से।
मुझे समझना है, ये दिल तोड़ना मुझे नहीं आता। 
क्यों तन्हा छोड़ कर, किसी को गमजदा करते हैं।
मुझे भी सिखा दो, यूँ साथ छोड़ना मुझे नहीं आता। 
कैसे अपना बनकर, किसी को लूट लेते हैं।
मुझे भी सिखा दो, ये कुफ़्र करना मुझे नहीं आता।
दुनिया बदल चुकी है, बस मैं नहीं बदल पाया।
मुझे भी सिखा दो, इस तरह से जीना मुझे नहीं आता। 

Wednesday, November 6, 2019

Mann (Mind)

मन

क्यों ये मन कभी शांत नहीं रहता  ?
ये स्वयं भी भटकता है और मुझे भी भटकाता है।
कभी मंदिर, कभी गॉंव, कभी नगर, तो कभी वन
कभी नदी, कभी पर्वत, कभी महासागर, तो कभी मरुस्थल
कभी तीर्थ, कभी शमशान, कभी बाजार, तो कभी समारोह।
पर कहीं भी शांति नहीं मिलती इस मन को।
कुछ समय के लिये ध्यान हट जाता है बस समस्याओं से
उसके बाद फिर वही भागदौड़ और चिंताओं भरा जीवन जीवन।
कभी अपनों तो कभी अपरिचितों से मिलता हूँ 
पर सबके बीच भी एकाकीपन लगता है।
कहीं भी इस मन को शांति नहीं मिलती।
पता नहीं कब तक ऐसे भटकता  रहूँगा मैं ?
क्यों मैं सब में घुल-मिल नहीं पाता ?
बहुत भटकने के बाद जान पाया कि भटकना व्यर्थ है।
बाहर भटकने से कभी मन की शांति नहीं मिलती।
मन की सारी समस्याओं का समाधान अपने ही पास है।
अपने मन को ही जीतना होगा क्योंकि भटकना इसका स्वभाव है।
इसकी गति को नियंत्रित करके सही दिशा देनी होगी।
अपने विचारों को नियंत्रित करके अपनी सोच बदलनी होगी।
स्वयं समझना होगा कि हमें क्या चाहिये और क्या नहीं।
अपने ही प्रति सत्यनिष्ठ बनकर अपना साथ देना होगा।
विश्वास करना होगा स्वयं पर और अपनी विजय पर।
जब मन में शांति होगी तो सब कहीं अच्छा लगेगा।
कहीं और जाने की फिर कोई आवश्यकता नहीं होगी।
मन को जीतना ही जीवन जीने की सच्ची कला है। 

Saturday, November 2, 2019

Family

हमारा परिवार, प्यारा परिवार।
हम सबके, जीवन का आधार। 
हर सदस्य के हैं, अपने विचार।
कभी होता है प्यार, तो कभी तकरार।
पर रहते हैं साथ, चाहे कोई हो बात।
फिर सुख के दिन हों, या दुःख की रात।
देश और समाज की, इकाई है परिवार। 
बिना परिवार, सूना सब संसार।