निर्दोष जीव
निर्दोष जीव को मार कर, तुम खुश कैसे होते हो?
निर्दोष जीव को मार कर, तुम खुश कैसे होते हो?
अनसुना कर वो करूण क्रंदन, चैन से कैसे सोते हो?
दिया जीवन जिसे प्रकृति ने, बिना तुमसे कुछ भी लिये।
उस असहाय के प्राण हरने, इतने आतुर क्यों होते हो?
धरती तुम्हारी बस नहीं, ये घर है हर इक जीव का।
किसी का बसेरा छीनने वाले, फिर तुम कौन होते हो?
दे सकते तुम जीवन नहीं, तो मारते किस हक से हो?
जब दर्द तुमको होता है, तब सिसक कर क्यों रोते हो?