Wednesday, December 25, 2019

After a certain time

एक समय के बाद, हर राज से पर्दा उठ जाता है। 
सूर्य, चंद्रमा और सत्य, ज्यादा समय तक नहीं छिपते।
एक समय के बाद, संवेदनायें खत्म हो जाती हैं।
हमेशा रोने वालों का, कोई साथ नहीं देता।
एक समय के बाद, बुढ़ापा और मौत आते हैं।
जवानी के गुरूर पर, तब पछतावा होता है।
एक समय के बाद, जब मौत सामने होती है।
पूरी जिंदगी का आईना, पल भर में दिखा देती है।
एक समय के बाद, बुराई हार जाती है।
उस ईश्वर के सामने, छल-बल नहीं चलता।
एक समय के बाद, सिर्फ पछतावा होता है।
क्यों कि समय कभी, किसी के लिए नहीं रुकता।
समय रहते सोच लो, समय का क्या करना है।
एक समय के बाद, समय समय नहीं देता। 

Wednesday, December 4, 2019

Nature

गौर करो तो पेड़-पौधों में भी जान है।
प्रकृति के हर कण की अपनी पहचान है।
कुदरत का हर रंग रूप बड़ा निराला है।
सब जड़-चेतन इस प्रकृति की ही संतान हैं।
इस धरती पर सबका बराबर अधिकार है।
ईश्वर को अपनी हर रचना से प्यार है।
फिर क्यों हम जंगलों को मिटा रहे हैं।
तरक्की के लिए प्रदूषण फैला रहे हैं।
यदि ऐसे ही हम पर्यावरण मिटायेंगे।
अपने बच्चों को कैसी धरती देकर जायेंगे।
आओ मिलकर पर्यावरण बचाएं हम।
अपनी आदतें बदलें और वृक्ष लगाएं हम।

Friday, November 29, 2019

When there will be the morning when ?

वो सुबह कब आएगी।
जब स्त्री निर्भय होगी, निर्भया नहीं बन पायेगी।
जब स्त्री शक्ति विश्व में, सर्वोपरि बन जायेगी।
दहेज के लिए फिर, कोई बहू नहीं जलाई जायेगी।
स्त्री बिना किसी डर के, पूरे विश्व में घूम पायेगी।
पुरुष के साथ बराबरी से, समाज को उन्नत बनायेगी। 
जब कोई किसी स्त्री को, भोग्य वस्तु नहीं समझेगा।
मातृ शक्ति स्वरूपा स्त्री, हर घर में पूजी जायेगी।
जब कामी व्याभिचारियों से, ये धरती खाली हो जायेगी।
पवित्र सभ्य समाज में, हर बेटी शान से मुस्कुरायेगी।
वो सुबह कब आयेगी??? 

Monday, November 18, 2019

Teach me

मुझे भी सिखा दो

मुझे भी सिखा दो, प्यार का दिखावा करना।
मैं प्यार करता हूँ, दिखावा मुझे नहीं आता।
अपना बना कर, धोखा कैसे देते हैं किसी को। 
मुझे भी सिखा दो, ये फरेब मुझे नहीं आता।
कैसे खेलते हैं लोग, किसी के मासूम जज्बात से।
मुझे समझना है, ये दिल तोड़ना मुझे नहीं आता। 
क्यों तन्हा छोड़ कर, किसी को गमजदा करते हैं।
मुझे भी सिखा दो, यूँ साथ छोड़ना मुझे नहीं आता। 
कैसे अपना बनकर, किसी को लूट लेते हैं।
मुझे भी सिखा दो, ये कुफ़्र करना मुझे नहीं आता।
दुनिया बदल चुकी है, बस मैं नहीं बदल पाया।
मुझे भी सिखा दो, इस तरह से जीना मुझे नहीं आता। 

Wednesday, November 6, 2019

Mann (Mind)

मन

क्यों ये मन कभी शांत नहीं रहता  ?
ये स्वयं भी भटकता है और मुझे भी भटकाता है।
कभी मंदिर, कभी गॉंव, कभी नगर, तो कभी वन
कभी नदी, कभी पर्वत, कभी महासागर, तो कभी मरुस्थल
कभी तीर्थ, कभी शमशान, कभी बाजार, तो कभी समारोह।
पर कहीं भी शांति नहीं मिलती इस मन को।
कुछ समय के लिये ध्यान हट जाता है बस समस्याओं से
उसके बाद फिर वही भागदौड़ और चिंताओं भरा जीवन जीवन।
कभी अपनों तो कभी अपरिचितों से मिलता हूँ 
पर सबके बीच भी एकाकीपन लगता है।
कहीं भी इस मन को शांति नहीं मिलती।
पता नहीं कब तक ऐसे भटकता  रहूँगा मैं ?
क्यों मैं सब में घुल-मिल नहीं पाता ?
बहुत भटकने के बाद जान पाया कि भटकना व्यर्थ है।
बाहर भटकने से कभी मन की शांति नहीं मिलती।
मन की सारी समस्याओं का समाधान अपने ही पास है।
अपने मन को ही जीतना होगा क्योंकि भटकना इसका स्वभाव है।
इसकी गति को नियंत्रित करके सही दिशा देनी होगी।
अपने विचारों को नियंत्रित करके अपनी सोच बदलनी होगी।
स्वयं समझना होगा कि हमें क्या चाहिये और क्या नहीं।
अपने ही प्रति सत्यनिष्ठ बनकर अपना साथ देना होगा।
विश्वास करना होगा स्वयं पर और अपनी विजय पर।
जब मन में शांति होगी तो सब कहीं अच्छा लगेगा।
कहीं और जाने की फिर कोई आवश्यकता नहीं होगी।
मन को जीतना ही जीवन जीने की सच्ची कला है। 

Saturday, November 2, 2019

Family

हमारा परिवार, प्यारा परिवार।
हम सबके, जीवन का आधार। 
हर सदस्य के हैं, अपने विचार।
कभी होता है प्यार, तो कभी तकरार।
पर रहते हैं साथ, चाहे कोई हो बात।
फिर सुख के दिन हों, या दुःख की रात।
देश और समाज की, इकाई है परिवार। 
बिना परिवार, सूना सब संसार।

Friday, November 1, 2019

Anger

गुस्सा

गुस्सा कहीं का उतारा कहीं।
ना करना था जो हो गया वही।
अफ़सोस भी अब कर नहीं सकते।
बात हद से बहुत आगे बढ़ गयी।
आता क्यों है गुस्सा जरा सी बातों पर।
क्यों कुछ बातें हो सकतीं अनदेखी नहीं।
काबू नहीं रहता अपने आप पर क्यों।
क्यों बाद में चुभता है पछतावा कहीं।
नुकसान ऐसे करता है अपना ही आदमी।
आता समझ में तब है जब हो देर हो चुकी।  
गुस्सा तभी करो हो जब ना कोई रास्ता।
हर बात पर गुस्सा किसी मसले का हल नहीं।
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Wednesday, October 23, 2019

Stone


                
पत्थर

पता नहीं ये जो कुछ भी हुआ, वो क्यों हुआ ?
पता नहीं क्यों मैं ऐसा होने से नहीं रोक पाया ?
मैं जानता था कि ये सब गलत है।
लेकिन फिर भी मैं कुछ नहीं कर पाया।
आखिर मैं इतना कमजोर क्यों पड़ गया ?
मुझमें इतनी बेबसी कैसे गयी ?
क्यों मेरे दिल ने मुझे लाचार बना दिया ?
क्यों इतनी भावनाएं हैं इस दिल में ?
क्यों मैंने अपने दिमाग की बात नहीं मानी ?
क्यों मैं अपनी बात पूरी हिम्मत से कह ना सका ?
क्यों मैं अपनी बात मनवाने की जिद पे ना अड़ा ?
क्यों मैं रोया उनके सामने जो पत्थर दिल थे?
रोकर किसी ने कोई जंग नहीं जीती कभी।
क्यों मेरी समझ में ये बात नहीं आयी?
मेरी भावनाओं की सबने हॅंसी उड़ायी।
मेरे ऑंसुओं को मेरी कमजोरी समझा।
सफलता क्यों मनुष्य को राक्षस बना देती है ?
अपना ही क्यों सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है ?
आखिर ऐसे जीवन से लाभ क्या है?
क्यों ये संसार और समाज ऐसा ही है?
क्यों इन सवालों के जवाब ढूँढ रहा हॅूं मैं ?
और किसे जवाब दूँ, खुद को या औरों को ?
सोचता हॅूं कि काश मैं एक बेजान पत्थर होता।
ना ये जिंदगी होती और ना इतनी तकलीफ होती।
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