गुस्सा
गुस्सा कहीं का उतारा कहीं।
ना करना था जो हो गया वही।
अफ़सोस भी अब कर नहीं सकते।
बात हद से बहुत आगे बढ़ गयी।
आता क्यों है गुस्सा जरा सी बातों पर।
क्यों कुछ बातें हो सकतीं अनदेखी नहीं।
काबू नहीं रहता अपने आप पर क्यों।
क्यों बाद में चुभता है पछतावा कहीं।
नुकसान ऐसे करता है अपना ही आदमी।
आता समझ में तब है जब हो देर हो चुकी।
गुस्सा तभी करो हो जब ना कोई रास्ता।
हर बात पर गुस्सा किसी मसले का हल नहीं।
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