Saturday, December 22, 2018

Life

जीवन 

जीवन एक रास्ते जैसा लगता है 
मैं चलता जाता हूँ राहगीर की तरह 
मंजिल कहाँ है कुछ पता नहीं 
रास्ते में भटक भी जाता हूँ कभी-कभी
हर मोड़ पर डर लगता है कि आगे क्या होगा 
रास्ता बहुत पथरीला है और मैं बहुत नाजुक 
दुर्घटनाओं से खुद को बचाते हुए घिसट रहा हूँ जैसे 
पर रास्ता है कि ख़त्म होने का नाम नहीं लेता 
कब तक और कहाँ तक चलते जाना है 
ना मुझे पता है और ना कोई बताता है
पर गिरते संभलते चला जा रहा हूँ 
उम्मीद में कि उस मंजिल पर सुकून होगा 
जिसका अभी तक कोई निशाँ भी नहीं मिला 
पर मैं और कर भी क्या सकता हूँ 
रास्तों पर रुका भी तो नहीं जा सकता 
रुको तो बेचैनी और बढ़ जाती है 
रास्ते जैसे धकेलने से लगते हैं मुझे
कभी शक होता है कि मैं चल रहा हूँ या रास्ते 
इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ खुद को समेटकर 
मैं बस चला जाता हूँ चाहे जैसे भी हो 
कि कभी तो ये सफ़र ख़त्म होगा मंजिल पर पहुँचकर 
क्यों कि ये जीवन एक रास्ता बन चुका है मेरे लिए 
जिस पर मैं बस चलता जा रहा हूँ।