Wednesday, October 23, 2019

Stone


                
पत्थर

पता नहीं ये जो कुछ भी हुआ, वो क्यों हुआ ?
पता नहीं क्यों मैं ऐसा होने से नहीं रोक पाया ?
मैं जानता था कि ये सब गलत है।
लेकिन फिर भी मैं कुछ नहीं कर पाया।
आखिर मैं इतना कमजोर क्यों पड़ गया ?
मुझमें इतनी बेबसी कैसे गयी ?
क्यों मेरे दिल ने मुझे लाचार बना दिया ?
क्यों इतनी भावनाएं हैं इस दिल में ?
क्यों मैंने अपने दिमाग की बात नहीं मानी ?
क्यों मैं अपनी बात पूरी हिम्मत से कह ना सका ?
क्यों मैं अपनी बात मनवाने की जिद पे ना अड़ा ?
क्यों मैं रोया उनके सामने जो पत्थर दिल थे?
रोकर किसी ने कोई जंग नहीं जीती कभी।
क्यों मेरी समझ में ये बात नहीं आयी?
मेरी भावनाओं की सबने हॅंसी उड़ायी।
मेरे ऑंसुओं को मेरी कमजोरी समझा।
सफलता क्यों मनुष्य को राक्षस बना देती है ?
अपना ही क्यों सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है ?
आखिर ऐसे जीवन से लाभ क्या है?
क्यों ये संसार और समाज ऐसा ही है?
क्यों इन सवालों के जवाब ढूँढ रहा हॅूं मैं ?
और किसे जवाब दूँ, खुद को या औरों को ?
सोचता हॅूं कि काश मैं एक बेजान पत्थर होता।
ना ये जिंदगी होती और ना इतनी तकलीफ होती।
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Wednesday, October 16, 2019

Why did you do that ?


तुमने ऐसा क्यों किया

जीवन की इस फुलवारी में, इस उम्र की चारदीवारी में।
आकर वसंत भी चले गये, पतझड़ भी आकर चले गये।
जब साथ ना सॉंसों ने छोड़ा, उम्मीद ने भी दम ना तोड़ा।
तुम हाथ छुड़ाकर चले गये, पर तुमने ऐसा क्यों किया?

जीवन बस मीठा शहद नहीं, जीवन विष का प्याला भी है।
कहीं फूल बिछे हैं राहों में, कहीं पत्थर और ज्वाला भी है।
सुख और दुःख आते-जाते हैं, ढंग जीवन का निराला भी है।
तुम साथ चले बस थोड़ी दूर, पर तुमने ऐसा क्यों किया?

तुमसे किस बात का अब शिकवा, हम तुमको समझ ना पाये थे।
कलियों संग भाग्य ने कॉंटे दिये, मैंने वो सब अपनाये थे।
जब अपनों ने मुझको छोड़ा, तुम अपने बनकर आये थे।
फिर करके पराया छोड़ गये, पर तुमने ऐसा क्यों किया?

यदि दुःख ही मुझको देना था, तो अपना बनकर ना देते।
इतने दुःख सहे हैं जीवन में, कि थोड़े और भी सह लेते।
अपने विश्वास के दीपक से, मैं लड़ता था अंधियारों से।
दीपक वो बुझाकर चले गये, पर तुमने ऐसा क्यों किया?

मैं पुतला नहीं हूँ माटी का, जो टूटकर बिखर जाऊॅंगा।
खुद को समेट लूँगा  फिर से, दीपक जो बुझा जलाऊॅंगा।
छोड़ा जिस मोड़ पे तुमने मुझे, उससे आगे बढ़ जाऊॅंगा।
तब तुम अतीत रह जाओगे, पर तुमने ऐसा क्यों किया?

इस समय की अविरल धारा में, जीवन आगे ही चलता है।
हैं जीवन पथ में मोड़ बहुत, पर जीवन आगे बढ़ता है।
पर एक दिन ऐसा आता है, जीवन आईना दिखाता है।
वो आईना तुमसे पूछेगा, कि तुमने ऐसा क्यों किया?

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